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श्री भुत पंचमी पूजन पाहांतर में मुनि मुद्रा होगी निर्गन्ध दिगम्बर । चरणों में एक जाएगा सादर विनीव भूभबर।
श्रीभुत पंचमी पूजन स्यादवाद मय ब्रदशांग युत माँ जिनवाणी कल्याणी । जो भी शरण हृदय से लेता हो जाता केवलज्ञानी ।। जय जय जय हिसकारी शिव सुखकारीमाता जय जयजय । कृपा तुम्हारी से ही होता भेद ज्ञान का सूर्य उदय । । श्री धरसेनाचार्य कृपा से मिला परम जिनचुत का ज्ञान । भूतबली मुनि पुष्पदन्त ने षट्खडागम रचा महान ।। अकलेश्वर में यह ग्रंथ हुआ था पूर्ण आज के दिन । जिनवाणी लिपिबद्ध हुई थी पावन परम आज के दिन ।। ज्येष्ठ शुक्लपचमी दिवस जिनश्रुत का जय जयकार हुआ । भूत पचमी पर्व पर श्री जिनवाणी का अवतार हुआ ।। ॐही श्री परमश्रुत षट् खण्डागम अत्र अवतर-अवतर संवाषट् अत्र तिष्ठ-तिष्ठ 8 अत्रमम् समिहितो भव भव वषट् । शुद्ध स्वानुभव जल थारा से यह जीवन पवित्र करा । साम्य भाव पीयूष पान कर जन्म जरामय दुख हरलें ।। श्रुत पंचमी पर्व शुभ उत्तम जिन भुत को बदन करलें । षट् खण्डागम धवल जयधवल महाधवल पूजन करा ।। ॐ ही श्री परमश्चत घट्खण्डगमाय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि । शुद्ध स्वानुभव का उत्तम पावन चन्दन चर्चित करलें । भव दावानल के ज्वालामय अघसताप ताप हरलें ॥ भुत ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट् खण्डागमाय संसारतापविनाशनायचंदनं नि । शुद्ध स्वानुभव के परमोत्तम अक्षत हृदय घर लें । परम शुद्ध चिद्रूप शक्ति से अनुपमअक्षय पद वरलूँ । ।भुत ॥३॥ ॐ हीं श्री परमत बट् खण्डागमाय अक्षयपद प्राप्तये अमतं नि । शुद्ध स्वानुभव के पुष्पों से निज अन्तर सुरभित करलें । महाशील गुण के प्रताप से मैं कंदर्प दर्प हरवू ॥ भुत. I४।।
ही श्री परमबुत पट खण्डागमाय कामवाणविष्वसनाय पुष्पं नि ।