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तीर्थकर सर्वज्ञ हितका महा मोक्ष के दाता । जो भी शरण आपकी आता, तुम सम ही बन जाता करलो।।३।। प्रभु दर्शन से आर्त सैद्र परिणाम नाश हो जाते । धर्म ध्यान में मन लगता है, शुक्ल ध्यान भी पाते करलो।।४।। सम्यक दर्शन हो जाता है मिथ्यातम मिट जाता । रत्नत्रय को दिव्य शाक्ति से कर्म नाश हो जाता करलो।।५।। निज स्वरुप का दर्शन होता, निज की महिमा आती ।। निज स्वभाव साधन के द्वारा सिद्ध स्वगति मिल जाती ॥करलो।।६।।
मैंने तेरे ही भरोसे मैंने तेरे ही भरोसे महावीर, भंवर में नैया डार दई ।। जनम जनम का मैं दुखियारा, भव-भव में दुख पाया । सारी दुनिया से निराश हो, शरण तुम्हारी आया ।।मैंने. ।।१।। चारों गतियो मे भरमाया, कष्ट अनन्तों भोगे । आज पुझे विश्वास हो गया, मेरी भी सुधि लोगे ।मैने ।।२।। नाम तुम्हारा सुनकर आया, मेरे संकट हर लो । आत्म ज्ञान का दीपक दे दो, मुझको निज सम करलो ।।मैने ।।३।। बडे भाग्य से तुमको पाया, अब न कहीं जा । मुझे मोक्ष पहुचा दो स्वामी, फिर न कभी आमा ||मैंने ।।४।।
आत्म ज्ञानी श्री सिद्ध चक्र का पाठ,करो दिन आठ,ठाठ से प्राणी ।
फल पायो आतम ध्यानी ॥१॥ जिसने सिद्धो का ध्यान किया, उसने अपना कल्याण किया ।
समकित पाकर हो जाता सम्यक ज्ञानी फल पायो ।।२।। पापों का क्षय हो जाता है, पर से ममत्व हट जाता है ।
भव भावों से वेराग्य होय सुख दानी फल पायो ।।३।। पुण्यों को धारा बहती है, माता जिनवाणी कहती है,
__घर पच महाव्रत हो जाता मुनि ज्ञानी फल पायो ।।४।।