________________
जैन पूजांजलि जिनमत की परिपाटी में पहले सम्यक्दर्शन होता ।
फिर स्वशक्ति अनुसार जीवको व्रत सयम तप धन होता । । द्वादश अग पूर्व चौदह परिकर्म सूत्र से शोभित है । पच चूलिका चौ अनुयोग प्रकीर्णक चौदह भूषित है ॥३॥ जय जय आचाराग प्रथम जय सूत्रकृताग द्वितीय नमन । स्थानाग तृतीय नमन जय चौथा समवायाग नमन ॥४॥ जय व्याख्याप्रज्ञाप्ति पाचवा षष्टम् ज्ञातृधर्मकथाग । उपासकाध्ययनाग सातवा अष्टम् अन्त कृतदशाग ।।५।। अनुत्तरोत्पादकदशाग नौ प्रश्न व्याकरणअग दशम् । जय विपाकसूत्राग ग्यारहवाँ दूष्टिवाद द्वादशम् परम् ॥६॥ दृष्टिवाद के चौदह भेट रुप है चौदह पूर्व महान । ग्यारह अगपूर्व नौ तक का द्रव्यलिंगि कर सकता ज्ञान ।।७।। पहला है उत्पाद पूर्व दूजा अग्रायणीय जानो । तीजा है वीर्यानुवाद चौथा है अस्तिनास्ति मानो ॥८॥ पचम ज्ञानप्रवाद कि षष्टम सत्यप्रवाद पूर्व जानो । सप्तम् आत्मप्रवाद, आठवा कर्मप्रवाद पूर्व मानो ॥९॥ नवमा प्रन्याख्यानप्रवाद सु दशवा विद्यानुवाद जान । ग्यारहवा कल्याणवाद बारहवा प्राणानुवाद महान ॥१०॥ तेरहवा क्रियाविशाल चौदहवा लोकबिन्दु है सार ।। अग प्रविष्ट अरु अग बाह्य के भेद प्रभेद सदा सुखकार ॥११।। दृष्टिवाद का भेद पाँचवा पच चूलिका नाम यथा । जलगत थलगत मायागत अरु रुपगता आकाशगता ॥१२॥ पाच भेद परिकर्म उपाग के प्रथम चन्द्र प्रज्ञप्ति महान । दूजा सूर्यप्रज्ञप्ति तीसरा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति प्रधान ॥१३॥ चौथा द्वीप-समूह प्रज्ञप्ति पचम व्याख्या प्रज्ञप्ति जान । सूत्र आदि अनुयोग अनेकों है उपाग धन धन शुस ज्ञान ॥१४॥ तत्त्वो के सम्यक निर्णय से होता शुद्धातम का ज्ञान । सरस्वती माँ के आश्रय से होता है शाश्वत कल्याण ॥१५॥