________________
जैन पूजांजलि जीवन दृश्य बदल जाएगा, जब देखेगा निज की ओर ।
अप के बादल विघट जाएगे हो जाएगी समकित भोर । । १९“जीवादी सदहण सम्पत्तपाऊँ प्रभु कसै प्रणाम । इन चरणो की पूजन का फल पाऊँ सिद्धपुरी का धाम ॥३२॥ ॐ ह्री श्री कुन्दकुन्दआचार्यदेवाय अवर्षपद प्राप्तये अयं नि. स्वाहा ।।
कुन्द कुन्द मुनि के वचन भाव सहित उरधार । निज आतम जो ध्यावते पाते ज्ञान अपार ।।
___ इत्याशीर्वाद जाप्यमन्त्र-ॐ ह्री श्री कुन्दकुन्दाचार्य देवाय नम
श्री जिनवाणी पूजन जय जय श्री जिनवाणी जय जग कल्याणी जय जय जय । तीर्थंकर की दिव्यध्वनि जय, गुरु गणधर गुम्फित जय जय ।। स्याद्वाद पीयूषमयी जय लोकालोक प्रकाशमयी । द्वादशाग श्रुत ज्ञानमयी जय वीतराग ज्ञानमयी । । श्री जिनवाणी के प्रताप से मै अनादि मिथ्यात्वहरूँ । श्री जिनवाणी मस्तक धाउँ बारम्बार प्रणाम करूँ।। ॐ ह्री श्री जिनमुखोद्भव सरस्वती वाग्वादिनि अव अवतर अवतर सवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, अत्रमम् सन्निहितो भव भव वषट् । मिथ्यात्वकलुषता के कारण पाया ना बिन्दु समताजल का । अपने ज्ञायकस्वभाव का भी अब तक प्रतिभास नहीं झलका ।। मै श्री जिनवाणी चरणो मे मिथ्यातम हरने आया हूँ। श्री महावीर की दिव्यध्वनि ह्रदयगम करने आया हूँ। मैं श्री ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भव सरस्वतीदेव्यै जन्म जरा मृत्यु विनाशनाए जलं नि । श्रद्धा विपरीत रहो मेरी निज पर का ज्ञान नहीं भाया । चन्दन सम शीतलता मय ह इतना भी ध्यान नहीं आया में श्री ॥२॥ ॐ ही श्री जिन मुखोद्भव सरस्वतीदेव्यै ससार ताप विनाशनाए चन्दनं नि । (११) समय सार - १५५ जीवादि पदार्थों का श्रद्धान सम्यकदर्शन है।