________________
जैन पूजाँजलि परिणाम बंध का कारण है ।
परिणाम मोक्ष का कारण है ।। रामचन्द्र जी के लघु भ्राता करते थे मथुरा मे राज । न्यायपूर्वक प्रजा पालते थे शत्रुघ्र नृपति महाराजा ।।१३।। मधु राजा को जीत राज मथुरा का इनने पाया था । मधुक का मित्र असुरपति एक चमरेन्द्र यक्ष तब आया था ॥१४॥ अति क्रोधित हो रोद्र भावमय उसके मन मे बैर जगा । किया प्रकोप महामारी का मथुरा का सौभाग्य भगा ॥१५॥ ईति भीति फैलाई इतनी नगरी सूनी हुई अरे । जहाँ गीत मगल होते थे वहाँ शोक के मेघ घिरे ॥१६॥ हाहाकार मचा नगरी मे शून्य हुए गृह मानवो से । पाप उदय हो तो क्या कोई पार पा सका दानवो से ।।१७।। पुण्योदय से इक दिन श्री सप्त ऋषि मथुरा मे आये । गगन विहारी नभ से उतरे जन जन ने दर्शन पाये ॥१८॥ तत्क्षण रोग महामारी का नष्ट हुआ सब हर्षाये ।। राजा प्रजा सभी ने अति हर्षित होकर मगल गाये ॥१९॥ मुनि चरणो के शुभ प्रताप से सारी नगरी धन्य हुई । सात महा ऋषियो के दर्शन करके पुरी अनन्य हुई ।।२०।। जल थल नभ से पुत्र सप्त ऋषियो की गुज्जी जय जयकार । धन्य तपस्या धन्य महामुनि धन्य हुआ तुमसे ससार।।२१।। सीता जी ने नगर अयोध्या मे इनको आहार दिया । विनय भाव से वन्दन करके अक्षय पुण्य अपार किया ।।२२।। श्री सप्त ऋषि परम ध्यान धर हुए भवार्णव के उस पार । परम मोक्ष मगल के स्वामी सकल लोक को मंगलकार ।।२३।। महा ऋद्धि धारी ऋषियो को सादर शीश झुकाऊँ मैं । मन वच काय त्रियोगपूर्वक चरण शरण में आऊँ मैं ॥२४॥ ऐसा दिन कब आयेगा प्रभु जब जिन मुनि बन जाऊँगा । जिन स्वरूप का अवलम्बन ले आठों कर्म नशा IR५॥