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समजीने अल्पभापो थनारने पश्चात्ताप करवानो पोहो ज अवसर समवे छे
हे नाथ ! सातमी तमतमप्रभा नरकनी वेदना मळी होत तो वखते सम्मत करत, पण जगतनी मोहिनीसम्मत थती नयी
पूवना अशुभ कर्म उदय आध्ये वेदता जो शोच फरो छो तो हव ए पण ध्यान राखो के नवा बाधता परिणाम तवा वो बधाता नयो ?
। यात्माने ओळखवो होय तो आरमाना परिचयी थवू, परवस्तुना त्यागी पद्
जेटला पातानी पुद्गलिक मोटाई इच्छे छ, तेटला हलका सभव ___ प्रशस्त पुरुषनी भक्ति करो, तनु स्मरण करो, गुण चितन करो
मुबई, वि० स० १९४६