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________________ नियमित रहो सत्शास्त्रनु मनन करो, रुची थेणिमा लय राखो १८ ए एक्के न होय तो ममजीने आनद राखता शीखो १९ वतनमा बाल्क थाओ, सत्यमा युवान थाओ, ज्ञानमा वृद्ध थाओ २० राग करवो नही, परवो तो सत्पुस्प पर फरवो, द्वेष फरवो नही, करवो तो कुशील पर करवो २१ अनतज्ञान, जनतदर्शन अनतचारित्र अने अनतवीर्यथी अभेद एवा यात्मानो एक पळ पण विचार करो २२ मनने का क्यु तेणे जगतने वश कयु। २३ आ ससारन शुक्रवो ? अनत वार थयेली माने आजे स्त्रीरूपे भोगवीए छीए २४ निग्रथता धारण करता पहेला पूर्ण विचार करजो, ए लईने खामी आणया करता अल्पारमी थजो । २५ समथ पुग्पो पल्याणनु स्वरूप पोकारी पोवारीने कही गया, पण कोई विरलाने ज ते ययाय समजायु २६ स्त्रीता स्वरूप पर मोह यतो अटकाववाने वगर त्वचान तेनु रूप वारवार चितववा योग्य छ
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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