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२४४ (५३) क्षमापना
हे भगवान ! हु बहु भूली गयो, मे तमारा अमूल्य पचनने लक्षमा लीधा नही तमारा कहेला अनुपम तत्त्वनो मे विचार कर्यो नही तमारा प्रणीत करेला उत्तम शीलने सेव्यु नही तमारा कहेला दया, शाति, क्षमा अने पवित्रता मे ओळख्या नही हे भगवन् ! हु भूल्यो, आथड्यो, रझळ्यो भने अनत ससारनी विटम्बनामा पडयो छु हु पापी छु हु बहु मदोन्मत्त अने कर्मरजथी करीने मलिन छु. हे परमात्मा । तमारा कहेला तत्त्व विना मारो मोक्ष नथी. हुं निरतर प्रपचमां पड्यो छु अज्ञानथी अघ थयो छु, मारामा विवेकशक्ति नथी अने हु मूढ छु, हु निराश्रित छु, अनाथ छु. नीरागी परमात्मा । हु हवे तमाएं, तमारा धर्मनुं अने तमारा मुनिनु शरण ग्रह छु मारा अपराध क्षय थई हु ते सर्व पापथी मुक्त थउं ए मारी अभिलाषा छ आगळ करेला पापोनो हु हवे पश्चात्ताप करु छु. जेम जेम हुं सूक्ष्म विचारथी ऊडो ऊतरूं छु तेम तेम तमारा तत्त्वना चमत्कारो मारा स्वरूपनो प्रकाश करे छे. तमे नीरागी,