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________________ २२८ 'केवळे' एटले 'शुद्ध आत्मा' पामीए तेम प्रवर्ताय ते मोक्षमार्ग छे १०२ कर्म अनत प्रकारना छे, पण तेना मुख्य ज्ञानावरणादि आठ प्रकार थाय छे तेमा पण मुख्य मोहनीयकर्म छे ते मोहनीयकर्म हणाय तेनो पाठ कहुं छु १०३. ते मोहनीयकर्म व भेदे छे - एक 'दर्शनमोहनीय' एटले 'परमार्थने विषे अपरमार्थबुद्धि अने अपरमार्थने विषे परमार्थबुद्धिरूप': वीजी 'चारित्रमोहनीय', 'तथारूप परमार्थने परमार्थ जाणीने आत्मस्वभावमा जे स्थिरता थाय, ते स्थिरताने रोधक एवा पूर्वसस्काररूप कपाय अने नोकपाय' ते चारित्रमोहनीय दर्शनमोहनीयने आत्मवोध, अने चारित्रमोहनीयने वीतरागपणु नाश करे छे आम तेना अचूक उपाय छे केमके मिथ्यावोध ते दर्शनमोहनीय छे, तेनो प्रतिपक्ष सत्यात्मबोध छे अने चारित्रमोहनीय रागादिक परिणामरूप छ, तेनो प्रतिपक्ष वीतरागभाव छे एटले अघकार जेम प्रकाश थवाथी नाश पामे छे-ते तेनो अचूक उपाय छ,--तेम बोध भने वीतरागता दर्शनमोहनीय अने
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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