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________________ २०९ 14 ३. एम मतार्थी जीवना लक्षण क्या ते वहेवानो हेतु ए छ के कोई पण जीवनो ते जाणीने मताथ जाय हव आत्मार्थी जीवना पण कहीए छोएते लक्षण केवा छ ? तो में आत्माने अयावाघ सुग्वनी सामग्रोना ____३४ ज्या आत्मनान होय त्या मुनिपण होय अर्थात् यात्ममान न होय त्या मुनिपणु न ज समवे 'न समति पासह त मोगति पासह -ज्या समक्ति एटले आत्मभान छे त्या मुनिपणु जाणो एम 'आधाराग मून' मा का छे एटर जेमा आत्मज्ञान होय ते साचा गुरु छ एम जाणे छे, अने मात्मनानरहित होय तो पण पोताना पुलना गुरुने सद्गुरु मानवा । मात्र कल्पना छ, साथी कई भवटेर न पाय एम आत्मार्थी जुए छ ___३५ प्रत्यार सद्गुग्नी मालितो मोटो उपकार जाण, अर शास्त्रादियी जे समाधान पई गमवा योग्य नमी, मने जे दोयो सद्गुरुनी आज्ञा पारण पर्या विना जता नपी ते सद्गुरुयागयी समाधान पाय, ओ ते दोपो टळे, माटे प्रस्पा सद्गुतो माटो उपकार जाणे, मने से छद्
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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