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१९३ (४) शका-शिष्य उवाच जीव कम कर्ता वहा, पण भाक्ता नहि सोय, शु समजे जड कम के, फळ परिणामी होय ७९ पळताता ईश्वर गण्ये, भोक्तापशु सघाय, एम वो ईश्वरतणु, ईश्वरपणु ज जाय ८० ईश्वर सिद्ध पया विना जगत नियम नहि होय, पछी शुभाशुभ बमना भोग्यस्थान नहिं कोय ८१
(४) समाधान-सद्गुरु उवाच भावक्रम निज क्त्पना, मारे चेतनरूप, जीवनार्यनी स्फुरणा ग्रहण परे जडधूप ८२ होर सुधा समजे नहीं जीव खाय पर थाय, एम गुभाशुभ यमनु भोकापणु जणाय ८३ एव राको एक नृप ए आदि जे भेट, कारण विना न नाय ते, त ज शुभाशुभ वेद्य ८४ पळगता ईश्वरतणी, एमा नयी जरूर; पर्म स्वभावे परिणमे, थाय भोगथी दूर. ८५