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________________ १८५ स्वगुद मत आग्रह तजी वर्ते सद्गुरलक्ष, समवित तने भाखियु, कारण गणी प्रत्यक्ष १७ मानादिक शत्रु महा, निजछते न मराय, जाता सद्गुरु गरणमा, अल्प प्रयासे जाय १८ जे सद्गुरु उपशथी, पाम्यो केवळनान, गुरु रहा छास्थ पण, विनय पर भगवान १९ एवो माग विनय तणा भाख्यो श्री वीतराग, मूळ हेतु ए मार्गनो समो कोई सुभाग्य २० असदगुरु ॥ विनयनो, लाम रहे जो काई, महामोदनीय कर्मयी, चूड भवजळ माही २१ होम मुमुच जीव ते, समजे एह विचार, होय मसायों जीव से, अवळो ले निर्धार २२ होप मतार्थी पहने, थाप न आतमलम सैह भतार्थी पक्षणा अहीं यह्या निपक्ष २३ मतार्थी-लक्षण पाह याग पा भान नहि, ते माने गुरु सत्य, अपवा निजकुळपमना, स गुरुमा ज ममत्व २४
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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