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नाम : नामो; मास्यानु, नि,
Tट गुमा मागो. गंगा, पद, गुरु, १४६
(२१) होत गगया परिगण, नदि इनमें मशः मान पृष्टिगी मूल , , भूल गये गत परि. रचना गिन उपदेशयो, परगोतम दिनु पाल; इनमें नय मत रहन है, भारते निज संभाल, जिन नो ही है मातमा, अन्न होई यो कर्म; कर्म फटे सो जिनवचन, तत्वज्ञानीको मर्म. जब जान्यो निजरपको, तब जान्यो सब लोकः नहि जान्यो निजरूपको, सब जान्यो सो फोक एहि दिशाको मृढता, है नहि जिन भाव, जिनसे भाव, विनु कबू, नहि छूटत दुःखदाव.