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१२४ त्रीजु पद :
'आत्मा कर्ता छे' सर्व पदार्थ अर्थक्रियासपन्न छे कई ने कई परिणामक्रिया सहित ज सर्व पदार्थ जोवामा आवे छे आत्मा पण क्रियासपन्न छे क्रियासपन्न छे, माटे कर्ता छे. ते कपिणु त्रिविध श्री जिने विवेच्यु छे, परमार्थथी स्वभावपरिणतिए निजस्वरूपनो कर्त्ता छे अनुपचरित (अनुभवमा आववा योग्य, विशेष संवध सहित) व्यवहारथी ते आत्मा द्रव्यकर्मनो कर्त्ता छे उपचारथी घर, नगर आदिनो कर्ता छे चो) पद :
'आत्मा भोक्ता छे' जे जे कई क्रिया छे ते ते सर्व सफळ छे, निरर्थक नथो. जे कई पण करवामा आवे तेनु फळ भोगववामां आवे एवो प्रत्यक्ष अनुभव छे विष खाधाथी विपनु फळ, साकर खावाथी साकरतु फळ; अग्निस्पर्शथी ते अग्निस्पर्शतुं फळ, हिमने स्पर्श करवाथी हिमस्पर्शनुं जेम फळ थया विना रहेतु नथी, तेम कषायादि के अकषायादि जे कई पण परिणामे आत्मा प्रवर्ते तेत फळ पण थवा योग्य ज छे, अने ते थाय छे. ते क्रियानो आत्मा कर्ता होवाथी भोक्ता छे.