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(८५) जैन-जरा अब अकलको जगह देकर मेरे सवालोंकी तर__फ खयाल कर ' जिन जीवोंको आप मारते हों । क्या में
जीव मरते नहीं है ? ___इसलिये धर्म हेतु मानते हों ? या मरते वक्त उन जीवोंको आध्यान ( सक्ट्रिपरिणाम ) नहीं आताहै ? अथवा तो व मरकर अच्छी गतिको प्राप्त होते हैं ' प्रथम पक्षको तो जाप स्वीकारहि नहीं सक्ते । क्योकि प्रत्यक्ष हम उनको मरते हुए देखते ह. अगर कहोगें उनको आत यान नहीं होता है तो यहभी पात फजुल है यतः उनके मतको तो हम नहीं देखसक्ते है मगर वचनसे आराटी मारते हुए देखते है. और उनकी आँखा आँसुकी धारा छूटती है विचारे तरल नेत्रसे
चारा ओर देखते हैं कि कोड धर्मात्मा पुरुप इस दु खदायिनी __ अवस्थासे हमें मुक्त करें । इत्यादि महिष्ट परिणामके चिह्न
प्रत्यक्ष तया देखे जाते हैं इसलिये दुमरा विकल्पभी आपके लिये अनुपादेय है
जैमिनि-जैसे लोहेका गोला भारा होनेकी वजहसे पा णिम डुरता है मगर फिरभी अगर उस्के अतीव पारीक पर्ने बनाये जाये तो तरते है. मारने के स्वभाववारी विपभी दवानाने प्रयोगसे अथवा मत्रसस्कार करनेसे गुण हेतु होता है जलानेके स्वभाववाली आगभी सत्यादिके प्रभारसे हमें