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(६८) जैन-देखिये दलील यह है । तथाहिःकर्त्तात्मा, स्वकर्मफल भोक्तृत्वात् । • यः स्वकर्मफल भोक्तासकर्त्तापिदृष्टः । 'यथाकृषीवलः।
भावार्थ-अपने किये हुए कर्मफलका भोगनेवाला होनेसे आत्मा कर्ताभी जरूर है । क्योंकि जोजो अपने कर्मोंका फल भोगते हैं वो कर्त्ताभी जरूर होते हैं । मसलन किसान लोग अनाजको खाते हैं तो उस्को उत्पन्नभी करते हैं । __सांख्य-अहा हा ! ! खूब कहा देखिये, आपकी किसानवाली मिसाल विलकुलहि हमारे मतको, सही कररही है। यतः आपने कहाकि किसान अनाजको खाता है तो पैदाभी करता है सो ठीका किसानके लिये तो कर्तृत्त्व और भोक्तृत्त्व ये दोनों वातें पाइ गइ मगर बाकीके लोक वगैरही खेती किये किसानके पैदा किये हुए अन्नको खाते हैं । वतलाइये, दोनों वातें कैसे पाइ जायगी ? बस इसीतरह किसानकी जगह
प्रकृति की है और पुरुष (आत्मा) भोक्ता है । बतलाइये, इस्में __ कौनसी वडी भारी भूल किई ?
जैन-वाह जी वाह ! ! आप बडे अकलमंद मालुम होते हो ? जो ऐसा वयान करते हो याद रहे ? यह वात कभी नहीं