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(५४) हास्य गर्भित रखा है, सो ठीक है । ऐसे पुरुष आत्मार्थि विद्वान् पुरुषोंके पास हास्यास्पदही होते हैं । अब आपके पास जरा इनकी अज्ञानताका नमूना दिखलाते हैं। ध्यान लगाकर पढ़ें और मनन करें। .
नैयायिक मतमें एक "गौतमसूत्र " नायका वडा प्रमाणिक ग्रन्थ है । जिस्को आर्यसमाजीभी बडे आदरसे स्वीकारते हैं । । स्वीकार क्यो नहीं ? छल जातिका स्वरूप तो इस्मेंसेही निकलता है । ) इस्के प्रथम सूत्रपरही कुछ विचार करतहैं । देखिये सूत्र यह है:____ " प्रमाण प्रमेय संशय प्रयोजन दृष्टान्ता' सिद्धांन्ता वय वतर्क निर्णय चाद जल्प वितण्डा हेत्वाभास छल जाति निःशह स्थानानां तत्त्व ज्ञानान्निः श्रेयसाधिगदः” न्या० द. स-१
मतलब-सूत्रमें गिनाये हुए सोलह पदार्थों के तत्त्वज्ञानसे जीव मोक्ष हासिल कर सका है। इनका ये मन्तव्य युक्ति प्रयाणसे ठहर नहीं सक्ता । सत्शास्त्रो में क्यान है कि "सन्यज्ञान क्रिया भ्यां मोक्षः" मतलव-ज्ञान और क्रिया दोनों कर मोक्ष मिलता है; ओर दलीलसेभी यही साबित होता है कि ज्ञान और क्रिया दोनों मिलकर मोक्ष पद हो सका है । चाहे ऐसे
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