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( ५२ ) एकके देखनेसे दूसरा स्मरण कर सकता है तो फिर मुझेभी उस परम पवित्र गिरिराजका स्मरण होना चाहिये । तथा हमारा स्वामी सेवक भाव संबंध है फिरभी उनकी देखी हुई वातका में अनुभव-स्मरण नहीं कर सकता । तो फिर बुद्ध का कहना कैसे सत्य हो सकता है। इसलिये पांचया दूपणभी इनके मतमें जवर दस्त पडा है। चाहे, जितनी कोशिश क्यों न करें हट नहीं सकता। प्रिय सज्जनो ! यहांपर मैं बहोत विस्तार करना चाहता था और इनकी मानी हुई बासनाकीभी कलइ खोल देता था। मगर क्या करें निबंध बढजानेके भयसे इसवातको मैं यहां परही छोडता हूं। किंबहुना । विज्ञेषु। ___अब जरा नैयायिक मतपर खयाल कर देखते हैं, तो इनके मन्तव्यभी ऐसे वैसेही मालूम पडते हैं । प्रथम ये लोग जगत्का कर्ता ईश्वरको मानते हैं। इनका यह कथन युक्ति प्रमाणसे नहीं ठहर सक्ता और कर्तृत्वोपाधिमें ईश्वरको डालनेसे वो कलडिन्त होजाता है । इस वातपर युक्ति प्रयुक्ति द्वारा कई जैनाचार्योंने तथा जैन मुनियोंने खंडन किया है । यहाँपर मैं इस मन्तव्यका खंडन जरुर करता, लेकिन मुझे निबंध बढ जानेका भय है । इसलिये मैं इस विषयमें नहीं उतरता। देखनेकी स्वाहीश वालोंने न्यायांभोनिधि श्रीमति