________________
(५०) वस्थाभी ठीक तोरपर नहीं चल सकती । क्योंकि मोक्षनाम छूट जानेका है । जो वह होगा वही जब छूटजायगा तव मोक्ष शब्दकी प्रवृत्ती होगी । सो इनके मतमें यह चात बनही नहीं सकती। क्योंकि पूर्वक्षण तो बद्धदशाही नष्ट होजायगा । तो मोक्ष किस्का रहा ? ऐसा तो होही नहीं सकता कि, पूर्व क्षण पद्धदशामें जावे और उत्तर क्षणका मोक्ष माना जावे । क्योंकि दुनिया भी ऐसा नहीं हो सकता कि जमाल गोटेका ( नेपालेका) जुलाब भतीजा लेवे
और दस्त चचेको लग जावें । इस लिये मोक्ष भङ्ग नामका दुषणभी इनसे परम मैत्री भाव रखता है । इस तरहसे बुद्धिको क्षण विनाशिनी माननेसे स्मरण ज्ञानभी इनके मतमें नहीं हो सकता है । इस लिये स्मृतिभंग नामका पांचमा दूपणभी बुद्ध निरूपित मन्तव्यमें बडे आनन्दसे निवास करता है । स्मृति नाम स्मरणका है सो-स्मरण ज्ञान उसे कहते है, जो पूर्व झालय देखीहुइ चीजका उत्तर कालमें याद करना । मसलन हमने किसी आदमीको देखा है, और कई दिनोंके बाद हम अपने भवनमें बैठे हैं । उस वक्त हमें उपयोग देनेसे उस पुरुएका स्वरूप तादृश्य याद आताहै, उस्को स्मरण कहते हैं। बादि देवसूरि महाराज स्मरणका लक्षण नीचे सुजय लिखते हैं। तथादिः