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(३८) आस्तिक-सर्वथा ईश्वर आप नहीं बन सक्ते हो । इसलिये हम क्या इल्के हरएक कह देगाकि आप ईश्वर नहीं है । मगर इससे हमारा अनुमान झूठा नहीं हो सकता । क्योंकि आप ईश्वर नहीं हैं, इन शब्दोमेही ऐसा सामर्थ्य है कि ईश्वर सिद्ध कर सके । जैसेकि आप ईश्वर नहीं हैं, इससे सावित हुआकि द्वादश गुण युक्त और ईश्वर जस्र है; अगर न होला तो निषेधभी नहोता । यतः कोइ ऐसे नहीं कहता हैकि आप वंध्या पुत्र नहीं हैं। और आपमें ईश्वरताका निषेधभी तीन जगत्की अपेक्षासे समझें । अन्यथा अल्प ईश्वरता तो आपमें भी पाइ जायगी। क्योंकि अपने संतानके व अपनी भार्थ्यांके ईश्वर तो आपभी है । बाद आत्म सिद्धि औरभी एक प्रमाण है । तथाहिः
॥ अस्तिदेहे इंद्रियातिरिक्त आत्मा, इंद्रियोपरमेपि तदुपलब्धार्थानुस्मरणात् । पंचवातायनोपलब्धार्थानुस्मर्तृ देवदत्तवत् ।-मतलव इंद्रियोंसे जिन पदार्थोंका हमें ज्ञान होता है । इंद्रियों के उपर होने परभी हमें उस्का अनुस्मरण होता है। इससे सिद्ध होता है कि अंतरंगमें देखने वाला कोई ओर है। वस, समझ लेवें वोही आत्मा है । वरना ( अन्यथा ) पदार्थ के साथ इंद्रिय संयोगके अभावकी हालतमें अनुस्मरण कैसे हो सक्ता था व पंचवातायनस्य देवदत्तकी मिसाल कैसे देते ? '