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(३५) निये, अब दीगरके जिस्म रहकी सिद्धि करते हैं । जरा व्यान लगाकर पढीयेगा । सामान्य दृष्टानुमानसे दूसरे लोगोम इष्टम प्रवृत्ति और अनिष्टसे निवृत्ति रूप आदतके देसनसे हम जान सक्ते है कि दूसरे प्राणियोंका शरीरभी सान्गि कहै । अगर आत्मा न होता तो इप्टा निष्ट, पत्तिय निरत्ति कभी नहीं होती । मसलन घटमें जीवात्मा नहीं हैं, तो इस्में प्रवृत्ति व निवृत्ति इन दोनों से फोडभी धर्म नहीं पाया जाता । इससे दूसरके शरीरम भी आत्मा है यह बात अच्छी तरहसे सिद्ध हो चुकी। अत नास्तिकने पेश्तर लिखाधाकि सामान्य तो नानुमानसेभी आत्मासिद्ध नहीं हो सक्ता यह पान बिलकुल गलनथी । देखिये । हमने नास्तिकके सामनेही दूसरेके शरीरमे सामान्य तो दृष्टानुमानसे जीवकी सिद्धि कर दिखलाई । अब कहानक लिखें । प्रिय सज्जनो! मयम नास्तिकके कथनपर खयाल पिया जाये तोभी जीवकीही सिद्धि होती है । मगर लगइल्मीयतमर्न दनमो भूतकी तरह इस कदर चिमडी है कि शायद इनका पीछा छोटे।
नाम्निक-पनाइये । हमारा कौनसा यथन जीकी सिद्धि कर रहा है।
आस्तिक-देखिये ! आप कहन हेकि जीव नहीं है, यद