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________________ (३१) हुआ कि करने वाला आत्मा है। जैसे रथ बाहरको जाता है या शहेरम जाता है तो उस वक्त हम जानते हैं कि इसके अ दर चलानेवाला जर है-इसी तरहसे शरीरभी मानिंद रथ के है । इस्लोभी चलाने वाला जरुर होना चाहिये । वस वोही आन्मा है। दूसरा अनुमान यह है कि हमारे शरीरकी आदि और प्रतिनियताकारता (लमापन व चौडापन निम्मा हटवालाहो ) होनेसे इसका बनानेवाला कोई जरुर होना चाहिये। जैसे घटा खाम दिन पैदा होनेसे आदि वालाभी है चोर हदवालाभी है । तो इस्ता बनानेवाला कुमार जरर है। इस इसी तरहसे उपग्ली दोगने यानि प्रतिनियताकार और आदि येह दोना रातें गरीरम पाई जाती है । इसलिये इस शरीरका भी द रनाने वाला होना चाहिये । पस सोही जीव है, इस जनुमानसे आपसोभी चोट वनानेवाला मानना पडेगा । इससे आपको जीवकाही शरण लेना पड़ेगा जिस वास्ते परहेज करनेय पोती गम उनाना हुआ। अब च्यातरेक देखिये, जिस्का कोड की नहीं हे वो पार्थ आदि आर मनिनियताकार इन दो पातासे गन्य होता है जैसे आकाश । नाम्निफ-आपके अनुमानम न्यनिचार है । क्याकि मेर पतिमा निनिया आशार (हद वाला)। मगर आप इमो नमाति ( शाम्या ) मानते ६ यान इम्का कोई
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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