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( २६ ) कार भृतोका परिणाम होताहै तोभी ठीक नहीं। क्यों कि ऐसा स्वीकारने पर आत्माही रवीकार लिया गया और इससे आत्मसिद्धि रूप पाश फिर आपके गली आनिरा ! जिने बद्ध होकर भागना मुश्किल हो गया अहाहाहा!!! इस दूसरे विकल्पने तो खूब आपको जकड लिये जरा आंखें खोलकर पाँवकी तरफतो निगाह करेंकि किस कल्पकी कला पड़ी है ।
नास्तिक-नहीं गं दूसरे विकल्पको नहीं मानता गलतीसे मुख खुल गया ! और झट यह विकल्प निकल गया ! इस लिये अब में इससे इनकारी हूँ और अहेनुक रूप तीसरे विकल्पका स्वीकार करता है। बतलाइये! इसमें दया दोष है ?
आस्तिक-शरीराकार परिणामको अहेतुक माननाभी ठीक नहीं है। क्योंकि अगर अहेतुक मानोगे तो आकाश कुमुम, बंध्यापुत्र, गर्दभ शृङ्ग आदिके सद्भावकाभी मसंग आनेगा। इसलिये मेरी इस नसीहतको याद रखेकि अकलमंद लोग वगेर दलीलके किसीभी वातको मंजूर नहीं कर सक्ते ? और अहेतुक पदार्थके माननेसे "सदा भावादिकां" प्रसंग आवेगा।
"नित्यं सत्त्व मसत्त्वं वाहेतोरन्यानपेक्षणादिति वचनात्" - इसलिये तुम्हारे मानने मुजब भूतोंका शरीराकार परि- णाम होनाही असंभवित है । इससे आपकी अच्छी तरहसे तसल्ली होगइ होगी कि ठीक भूत चैतन्य जनक नहीं होसक्ता