________________
__ आस्तिक-यह भी पात अघटित है । क्योंकि जन्यय व्य. तिरेकताका अभाव होनेसे प्राणापान (श्वासो वासादि) भी चैतन्यका कारण नहा होमत्ता । इसलिये कि जन मरण अवस्था नजी जाती है ता अतिदी भाणापान (थासोश्वास) के होनेपर मी चैतन्गकी न्यूनताही देवी जाती है, और मन, वचन, कायाके योग रोक्कर प्राणापानमा निरोध करनेवाले योगीयोंग माणापानके अस्प हो जानेपरभी चैतन्यकी दि देगी जाती है । इससे साबित होता हैक्मिाण और अपानभी चेतन्ररे कारण नहीं हो सक्ते है ।
नाम्नि-मुडदेंमें आगका अभाव होनेसे वायुके सचार करनेपरभी चैतन्य नही हो सक्ता । ___ जास्तिक-वाह ! सुन मुनाया, आपरे दिल्म तो यह उतर्क रडी पहाट जैसी मालम होती होगी मगर याद रहे, हमारे पास तो एक जरा (परमाणु) रप मालूम देती है। गुन लीजिये ! अगर आगके अभापसे चैतन्य प्रकट नहीं होता तो जिस वक्त गुडदेको चितामें डालते है, महाकि आग घस घस करती उरती हे उस वक्त फौरन चैतन्य पैदा होजाना चाहिये, और चितासे उदार भागना चाहिये । मगर भागे फहसि! जीवात्मा तो परलोकमें पहुच गया फिर भागेगा फौन ? इससे आपको अन्जी तरहसे मालूम होगया होगाकि आपके