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________________ । माननी ही पढेगा और जो स्थापनाको नही मानते उन्हे नामभी छोडना होगा क्यों समझे न. यज्ञ-वाह दीनानाय ! खूप आनद वादिया, याज मैरी शङ्का विलकुल दूर हो गई. अहा क्या सज्ञ परमात्मा सभी अयथार्थ कह सकता है कभी नहीं ! तोयस अब जान लिया फि अवश्यमेव अरिहत भगवान ही साकार ईश्वर हो सक्ते हैं, अस्तु पु-हे गुरवयं ' अ कृपाकर निराकार ईश्वरका बयान फरमा सरि-हे आर्या निराकार ईश्वर सिद्ध भगवानकों कहते हैं जबकि अरिहत भगवान चौदमें गुणस्थानको पहुचने के बाद एक समय मानमें सिद्धशिलाके अग्र भागको पहुच जाते हे तर वे सिद्धात्मा क गते हैं वहा जानेके पश्चात् उनके अन्तिम शरीर मान आत्म मदेशरा तीसरा भाग सोच जाता है वै अनत ज्ञान, दर्शन, चारित करके सहित होते है तथा ससारमें उनका पुनरागमन नहीं होता। ___ सर्वभाली-हे कृपालु गुररान आपने जो ईश्वरका बयान फरमाया सो अत्यन्त प्रशसनीय तथा आदरणीय है, अवश्यमेव ऐसे ही दे को सुदेव कहना चाहिये. अप कृपाकर मुगुरुका बयान फरमारे,
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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