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________________ ( २९६ ) ; ११ पूजातिशय, इसके प्रभावसे तीन सुचनमें रहे हुवे देव तथा मनुष्य आपकी अर्चा करते हैं. १२ अपायवगमातिशय-इसके प्रभावसे जहां २ आप विचरते हैं, नहां २ एक २ जोजनतक, अतिष्टि, दौर्भिक्षादि नही होते. चौतीस अतिशय. ___ ? दिक्षा ग्रहण किये वाद प्रशुके रोम, केश, नखादि ऋद्धिको प्राप्त नहीं होते. २ प्रभुका शरीर निरोग रहता है. ३ खून गौदुग्ध सदृश होता है. ४ स्वासोस्वास कमलके पुप्प सहश सुगधित होता है. ५ प्रयुका अहार निहार कोई देख नही सक्ता. ६ प्रभुके आगे धर्मचक्र चलता है. ७ प्रभुके ऊपर छत्र त्रय रहते हैं. ८ प्रभुके ऊपर चामर युग उड़ते हैं. ९ प्रभुके विराजनेको स्वर्ण सिंहासन होता है. १० प्रभुके आगे इन्द्रध्वजा चलती रहती है. ११ प्र के साथ अशोक वृक्ष रहता है. १२ प्रभुके आगे भामण्डल रहता है. १३ प्रभु जहां २ विचरते है वहां एक २ जोजन तक __ भूमि समान होजाती है.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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