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(२८९ ) जाना चाहिये । यह वात पहिलेही कही जा चुकी है कि भारतवर्षकी दशारे परिवर्तन होनेका मूल कारण धर्म ही है कहा तो रह पृथ्वी के बलुतेरे देगोका धर्ममवर्तक बनाया और पादोते २ धर्मसे ही मानो परतनताको प्राप्त होगया । यद्यपि उतनी ची श्रेणोसे ऐसी नीची दशा तक गई भारी २ आपत्तिया और सक्ष्ट यहातक भोगे कि अन्तमे तो वरुपी जिस हरे परे इसकी पुनर छाहर्म इमने विश्रान्ति की थी यह माय' सारा भूस गयाथा, तथापि उस वृक्षमा वीज दैवयोगसे चैसी दशामभी इसके हाथसे जान नहीं पाया, जोफिर इसकी दशाके कुछ पल्टा साने पर पीन पारित तथा पशि हुआ है यहही इन देशका सौभाग्य है कि
समो वर्तमान रानाशयगे फिरसे धर्म विषयमे सतनता मिलगई जिससे वह अकुर पढता २ एक गेटेगे हरे रूपमें हो गया है, और भारतवासियोंजो भी आगा धगई कि भविप्यतमें यह जल्दी हो पहिरेकासा दियातिदायक वृक्ष बन जावेगा, अर्थात् प्राचीन कालंग इस देशके मनुप्य जैसे वामिष्ट और पराक्रमी और सुखी थे वैसेही अर हो जावेगे
निर्दोष चौथा विशेपण ईश्वरसो देना चाहिये क्योंकि दोप याने अशुद्धताही जन्म मरणका कारण, मग स्वत्रता और सर्पक्षताका घातक है शुभ भूयार
पन्देयाला.