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( २८३) जवानी दुख भोगनेके लिये और केरल वृद्धावस्थाही सुख भोगनेके लिये है ? सच पूछा जाय तो निसने अपनी छोटी उमर तथा जवानीमें एक पडी भरभी परमेश्वरका ठीक स्मरण नहीं किया, ऐसे हद मनुष्य अपन देसते हैं कि उसके मनकी प्रति एक क्षणभी ईश्वरको और नहीं झुकती है। इसलिये इस विषयका शुद्ध सम्कार बाल्यावस्था ही में हो जानेसे पडे होनपर उत्तम फल होता है। ___ चाहे कोर्ट बालक हो वृद्ध, चाहे कोई पुरप हो वा स्त्री, चाहे कोई पठित हो पा अपढ, चाहे पोई श्रीमान् हो या कगार, चाहे कोई उची जातिका हो पानीची, चाहे कोई देगी हो पा पिटेगी, सर फोई परमेश्वरकी भक्तिके सो रहम्पको जाननेके अधिकारी ६, इतना ही नहीं परन्तु परम कर्तव्य है कि उस सर गतिमानसी भक्ति करने हुए अपने जीवन सफल करें। ____ हम इम पातशे पदिदी सिद्ध करनुफे है कि ईश्वर की भक्ति करने से मनुप्य मुग्वी होते हैं । यह यान भी किसी मपी नहीं ६ रि भारतवर्पमें क्या हिद, या मुसल्मान, क्या जेन, श पासी, रया ईसाई और क्या अन्य माप मभी भरसो मारने पार । ये रोग “घर है ऐमा काल मानते हो नहीं, परन उसका म्मरण, चिन्नान, प्रार्थना, उपामना और भतिभी उरते हैं । ऐसी टगामें