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( २७९ ) ज्ञान और निर्दोषता प्राप्त करनेके लिये केवल ईश्वरसे सम्बध करना-इश्वरका सेवन करना-ईश्वरकी भक्ति करना ही उचित्त है।
कितनेक आलसी मनुष्य यहभी कहा करते है कि ऐसी स्वतनता, ऐसे सुख और ऐसे ज्ञान, ऐसी निर्दोपतासे हमें क्या करना है जो हम ईश्वरकी भक्तिकी इतनी घटी भारी ग्वटपटमें पडे, जो थोडा बहुत सहजहीमें मिलजाय वही हमें तो वस है, लाख मिलार रखेश्वरी न घने तो न सही भाग्यसे जो कुछ समयपर मिले वही अच्छा है विचार करना चाहिये कि खुले मैदान किया जगली उत्तम हवासे शरीर की आरोग्यता बनी रहती है, शरीर प्रफुहित रहता है, मगजम तरास्ट बनी रहती है, कामकाजमें तरियत लगती है, इत्यादि नाना प्रकारके जो राम होते है उन्हें न मान फर यह कहना कि सन्छ और मैली हवामें क्या है ? कहीं भी स्वास लेनेसे मतस्य रस कर गदगीसे री हुई हमें यदि कोई पड़ा रहे तो क्या ऐसा मनुष्य कोई समझदार माना जायगा?
कोई २ जो भक्तिके वास्तविक सम्पस अनभित होते हैं पहुचा पेसा भी कहा करते है कि भक्तिसे मुसादि मिलने का विवार क्यार करना चाहिये जब कि कई भक्ति करनेवाले उड दुखी हुए दीस पडते है । ऐसी गुफा करने पालोको