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(२६० ) भाग्य देशका जो कुछ बिगाड़ हुआ है, वह वास्तवमे कुछ कम नहीं समझना चाहिये । यदि इतनेहीसे वस होता तोभी कुछ धीरज धर सक्ते थे परन्तु एक नई वात ऐसी हुइ है जिससे इस देशके प्राण नाश होनेकी शंका उत्पन्न होती है
वह वात कौनसी ? यही कि अब अपनी हजारों वाँकी स्व__ भाव सिद्ध धर्मत्ति धीरे २ लोप होती जारही है, अपने स
त्गास्त्रोंसे दिनों दिन कितनेही लोगोंकी श्रद्धा उठती जाती है। पुर्ण विचार किये विना जिस प्रकार कितनेक देशबंधु अपने धर्म सम्बंधी कामोंमें विपरीत वरतने लगे हैं, उसी प्रकार बहुतेरी वातोकों वे झुठीभी समझने लगे हैं, तिसपरभी इन सारी वातोंके ऊपर कलशके तुल्य एक भारी वात यह हुइ है कि आजकलके नव शिक्षितोंके अधिकांश भागमें ऐसे विचार प्रसारित होते हुए दिखाइ देते हैं कि "इश्वर कोई वस्तुही नहीं है, जो कुछ दृष्टि पड़ता है सो सर्व स्वभाव (नेचर) ही से होता है."
उनलोगोंको पांच चार दिन जो खाने पीनेके लिये ठीक पदार्थ, पहिननेके लिये अच्छे वस्त्र, मिलने झुलनेके लिये मित्र, वांचनेके लिये पुस्तके वा समाचारपत्र, इत्यादि कई वातोंमेंसे एकाद बातभी न मिले तो वे बड़े दुःखी हो जातेहैं परन्तु विना इश्वरस्मरण किये कई दिन तो क्या पर अनेक वर्ष भी बीत जायें तो भी उनके चितमें कुछ खेद नहीं होता