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(२४२) उज्जयनीके राजा प्रजापालकी श्रीमयणासुंदरीकी कथा जो प्रति आश्विन चैत्रमें हम सुनते हैं उसमें राजाने अपनी दोनों पुत्रीयोंका किस प्रकारका उच्च अभ्यास कराकर उनोंकी कैसी २ फठिन समस्याओंसे परीक्षा ली है तो क्या अभीकी सीय शिक्षाके योग्य नहीं है ?
एक कवीने कहा है:स्त्रीणामशिक्षित पटुत्वममानुषीषु । संदृश्यते किमुतया प्रति बोधवत्या ॥ प्रागन्तरिक्ष गमनात् स्वय पत्यजातम् ।
अन्य दिजै परभृतः खलुपोषयन्ति ॥ १॥ अर्थ:-मनुष्य जातिमें स्त्रीय अपठित अवस्थामेंभी बड़ी चतुर होती हैं तो शिक्षित हुवे पश्चात् तो उन्होंका कहनाही क्या ? __ दृष्टांत-तिर्यंच जातिकी कोकिला (स्त्री) अपने अंडोंकों अन्यपक्षीयोंके मालोंमें रखकर आकाशमें उड़ती है और उन मालोंके. मालिक पक्षियोंके आकाशसे उतरने पेश्तर आप आकर पीछे ‘अपने अंडोंको ले उड़ती है इसी तरह निरंतर उनौके शिशुओंका पोषण करती है-तिर्यच जातीकी स्त्रीभी ऐसा चातुर्यता है तो मनुष्य जातीकी स्त्रीयोंके विषयमें कहनाही