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(१२) से हेतुका ग्रहण करना और संबंधका स्मरण करना इन दो बातोंसे अनुमान पैदा होताहै । हेतुके व्याप्ति ज्ञानके प्रत्यक्ष होनेपर अनुमान होता है । इसलिये मंत्यकी इल्मदानोंने अनुमानका एक हिस्सा प्रत्यक्ष मानाहै । जव कोइभी हिस्सा जिप्त वातका प्रत्यक्ष नहीं होगा वो बात अनुमान पयमें कभी नहीं आ सकेगी । इसलिये आत्माका कोइ हिस्सा प्रत्यक्ष न होनेकी वजहसे अनुमानसेभी आत्माकी सिद्धि नहीं होसक्ती है। .. आस्तिक-सामान्य तो दृष्टानुमानसे (साधारण तोरपर देखे हुए अनुमान) सूर्यकी गतिकी तरह क्या आत्माकी सिद्धि नहीं हो सक्ति है ? यथा ॥ गति मानादित्यो, देशान्तर प्राप्ति दर्शनात् । देवदत्तवत् इति यतोहन्त देवदत्ते दृष्टान्त धमिणि सामान्येन देशान्तर माप्तिर्गति पूर्विका प्रत्यक्षेणैव निश्चिता सूर्योपि तत् तथैव प्रमाता साधयति-इति युक्तं ॥ देवदत्तकी तरह देशान्तरमें प्राप्ति होनेसे जैसे मूर्य गतिवाला है। यहांपर देवदत्तका दृष्टांत ठीक है। क्योंकि देवदत्तकी दूसरे देश प्राप्ति प्रत्यक्ष चलनेसे निश्चित है इससे सूर्यको गतिका अनुमान होता है, ऐसे सामान्य दृष्टानुमानसे आत्माकी सिद्धि हो जावे तो क्या हरकत है ?
नास्तिक-क्यों नहीं हरकतें जरूर है । क्योंकि देवदत्तकी गति तो प्रत्यक्ष प्रमाणसे निश्चित है । आत्माकी सिद्धि में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है।