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( २२२ ) र दो तो में मन वश किया सच्चा समझुं. यद्यपि आगमसे में समझ गया हूं कि आपने मन वश किया मगर मेराभी मन वश कर दो तो में स्वतः अनुभव करु,
हे इस लेखके वाचकटंद ? कृपादृष्टी कर उक्त लेखको दारवार पढकर आनंदघनजी महाराजका अनुकरण कर मनको वशमें करनेका प्रयत्न करना और जिनभक्तिमें लयलीन रहकर स्वात्माका उद्धार करना यह एक सज्जनके सेवक
और दुर्जनके मित्रकी वीनति है, और जो कुछ अयोग्य लिखनेमें आया हो उसके लिये क्षमा प्रार्थी हुं-इत्यलं विस्तरेण, ____ता. क -इस लेखमें किसी वातका पुनरावर्तन करनेमें आया है यह खास पाठकोंके लाभार्थ समझना.
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