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यथाघटो मृतपिडस्य शरीरस्यान्वयव्यतिरेकावनुकरोति चचैतन्यं तस्मात् तत्कर्तृत्व । इत्यादि
अर्थ:-जो पदार्थ जिसके साथ अन्वय व्यतिरेक रप उभयतया समन्व रखताहे वो उसका कार्य होता है । मसलन मिट्टीका कार्य घडा कहलाताहै क्योंकि वगेर मिट्टीके घडा नहा बन सकता। अत मिट्टीके होनेपर घडा होताहै और घट विवत्ति मृत्तिाके अभाव होनेपर घटकाभी अभाव होताहै । इससे सावित हुआकि घट मृत्तिका के साथ अन्वय व्यतिरेकका, और मृत्तिकाका कार्य है । ऐसेही चैतन्यभी शरीरका अनुकरण करता है। क्योंकि शरीरके अतिस्तत्वमें ज्ञानका अस्तित्व होता है और शरीरका अभाव होनेपर चैतन्यकाभी, अभा व होताहै । इसलिये चैतन्य गरीरका कार्य है । अन्धय व्यति रेकसे कार्य कारण भाव जाना जाता है। जैसे आगका कारण लकडी है और आग उसका कार्य है । इसलिये लकडी के होनेपरही भाग पैदा होती है और रसडीके अभावसे आगकाभी अभाव होता है। इससे यही साबित हुआ कि अन्वय व्यतिरे का कार्य आग लकडीके कार्यके समान है । लकडाके होनेपरही आगके होनेको अन्वय कहते है, इसका मतत्य यह हुआकि किसी जगहपर कोईभी आदमी क्यों नचला जावे काष्ट प्रमुख साधनके पिना आग कभी नहीं पैदाहो सकती ।