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( २०१) मनोनिग्रह.
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लेखक-चदनमल नागोरी छोटी सादडी-मेवाड.
प्रिय पाठक ? "मन एव मनुष्याण कारण वध मोक्षयो" यह शास्त्रका खास वचन है मनुष्यको वधनमें डालनेके लिये और मोक्ष प्राप्तिके लिये मन प्रधान तुल्य है मनोनिग्रहका विपय अल्त गहन है इसकी व्याख्या सविस्तार करनेकी च लिखेनेकी शक्ति लेखकमें नहीं है मगर पाठकोंको अनु भव होगा कि, यह मन कोई चरुत ऐसी कुविकल्प जाल फेला देता है कि माणीको कृत्याकृत्यका विचारही नहीं आ नेदेता और मनको दश रखना भी आवश्यकीय है-ओर यह वशीभूत होना भी मुगविल है क्यों कि दुविम्ल्प जालोंसे नित होना सन्ज नहीं है, जैसे पारपीकी जारमें आया हुआ मच्छ नीकल नहीं सक्ता इसी तरह मनरूपी पारधीकी कुपिल्प जालमें आया हुआ जीव निकलनेको असमर्थ होता है और जिस कदर पारवी जालम आई हुइ मन्छीको मारनेका प्रयत्न परता हे इस तरह यह मन नर्कम लेनानका प्रयत्न करता है ओर अनेक विचारोंकी श्रेणी विचारशील होकर तैने जो मुकृत्य किया है तो उन्हें क्षणभरमें नष्ट करने वाला और दु