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आशा न रखते वही काम करना, और आखिरमें प्रतिष्ठित मनुष्यका समागम होनेसे मुझे शोभा मिलेगी इस लिये उन (प्रतिष्ठित मनुष्य ) का समागम करना चाहिये।
इसी हेतुमे जीमनेकी परिपाटी प्रचलित हुई होगी ऐसा ज्ञात होता है। यह परिपाटी मंसार व्योहारका आनन्द देने वाली है यह तो सब कबूल करेंगे, परन्तु इतना ध्यान में आवेगा कि जीमना, जिमाना यह लग्नं अथवा उसके जैसे दुसरे प्रसंगमें आनन्द देने वाली है। परन्तु मृत्युके समय जिस वक्त प्रिय स्नेहीके अकाल मृत्युसे आपके दृदयमें एक जंगी चोट लगी ऐसा हो जाता है और उमके जनमके मारे
आप रोते हैं तो ऐसे प्रसंगमें जातिके लोगाको मिष्ठान्न खिलाना यह कौनसे मकारके आनन्दका कारण है सो ज्ञात नहीं होता। _ मृत्यु यह कोई छोटी बड़ी वात नहीं है । मनुष्य मरगया और लकड़ीका टुकड़ा टूट गया यह वरावर नहीं, तोभी मृत्युके वाद जीमनवार इतना जरूरतका हो गया है, कि दूसरे शुभ अवसर पर न होतो नहीं सही, परन्तु मृत्युके बाद जीमनवार तो करना ही चाहिये, स्वर्गस्थके कुटुम्बको एक मनुष्य रत्नकी खामी पड़ी उसका तो कुछ नहीं, परन्तु उसकी जानका भोग देना ही चाहिये. खर्चकी शक्ति हो या न हो, भविष्यम पालन पोषणके सांसे हो तो भलही हो, परन्तु स्वर्गस्थका नुकता तो करना ही चाहिये । यह कहांका शानपन ? स्त्रीकी अघरनी और मा वापका