________________
(१८८ ) अर्थः-जो बस्तु नहीं मिलसक्ती उसकी इच्छा पंडित लोक नहीं करते और जिस वस्तुका नाश होगया हो उसका रंज नहीं करते, आपत्तिम मोहके आधीन नहीं होते; कारन कि वह अच्छी तरह जानते हैं कि जिसका जन्म उसका मरनभी है, जिसका नाम है उसका नाश होता है ! जिसका बड़ा सम्बन्ध था व राजा, महर्षि और रिद्धिवंत थे वेभी चलेगये तो अपन किस बुनियादमें ? वो अच्छी तरह जानते हैं कि ( The virtune of adversity is fortituded ) विपत्तिका सद्गुण धीरज है (यानि विपत्तिकी मुख्य औषधि धैर्य है ) शोकके लिये दीन होने और धैर्यको छोड़ देनेसे उसके ज्ञानको निन्दा होति है. पंडित पुरुष ऐसे वक्त धैर्य, उत्साह और शौर्यका त्याग कदापि नहीं करते. वो शोक रूपी विकराल सैन्यके सामने धीरज रूपी तपके मारसे फतहमन्द होते हैं, उसमें ही धीरपुरु का धैर्य मालुम हो जाता है और उसी वक्त उनकी कसोटी निकलती है, कहा है कि आपत्स्वेव हि महतां शक्तिरभिव्यज्यते न संपत्सु अगुरोस्तथा न गंधः प्रागस्ति यथाग्निपतितस्य ___ अर्थ-महान् पुरुषोंकी संपत्ति में नहीं परन्तु विपत्ति मेंही शक्तिकी परीक्षा होती है जैसे कि अगर चदनकी सुगंध अग्नि में पड़े पीछेही मालुम होति है.