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उपदेश. माता-पिता-भाइ वहन-जमाई-लड़की-पुत्र-प्रिय मित्र प्यारी भार्या वगैरः मरजाते हैं तब रंज पैदा होता है और रोना जरूर आता है, यह सही; परन्तु यह सब हद वहार न होना चाहिये. उस समय क्या करना चाहिये-बहोतसे लोग दुःखसे वाचले हो जाते है, आंखमेसे चौधारा आंसु बरसाने को छाती और माथा कूटते हैं, तथा जमीन पर पछाड़ मारते हैं, क्या इससे तुम्हारा शोक दूर होजाता है ! ऐसा करनेसे तुम्हारे शरीरका बल कम होता है, दिल निर्वल होजाता है और बुद्धि घट जाती है, अलवते यह तो सही है कि मरनेके वरावर दूसरी कोई आपत्ति नहीं ! धनगुमा हो तो परिश्रमसे पीछा मिलासक्ते हैं, गई हुई विद्या फिर अभ्यास करनेसे मिल सक्ती है, रोगकी आफत औपधिसे दूर होती है। परन्तु मनुष्य रूपी रत्नकी सब विपत्तियोंसे बड़ी विपत्ति है. एक मनुष्यकी साधारन वस्तु जाय या उसका नाश होजाय तो दिलमें खेद अवश्य होता है, तो अपने बहुत स्नेही मनुप्यके जानेका खेद क्यों न होगा ! अपने स्नेहीके मरते वक्त शोकसे हृदय बिलकुल व्याकुल हो जाता है पर यह असर ज्ञानवान पुरुष को नहीं होती! घृष्टं धृष्टं पुनरपि पुनश्चंदनं चारुगंघ, ..