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________________ ( १५८) रुदन कियाही करती है उस वक्तमें बिलकुल मरजी न हो तोभी सगे सम्बन्धी उसको जबरदस्तीसे कहते हैं कि मृत्यु पायाहुआ मनुष्य विना नुकते रहता है, यह कितना इलकापन है, वगैरः शब्द कहकर उसकी विना मरजीसेही, यदि उसके पास पैसा न होतो घरवार या मिलकत विकवाके नुकता करवाते हैं, तीन दिन मिष्टान्न उड़ाकर सगे सम्बन्धी तो अपने घर जाते हैं, तब विधवा वाईको अपना तथा अपने बालबच्चोंका गुजारा किस प्रकार चलाना तथा वच्चोंको विद्या किस तरह पढानी यह मुशकिल पड़जाता है, साधन रहित उस बाईको मजूरी ___ करनी पड़ती है उस वक्त गुजरान जितने पैसे मिलते हैं, वक्त पर नहीं मिले तो उसके निराधार बच्चे भूखे रहते हैं, उसके सगोंको तो उसकी कुछभी फिकर होतीही नहीं, उनको तो तीन दिन तक माल पानी उड़ानाथा वहां तक सिखावन देनेको आतेथे और इस वक्त उसके सामने तक नहीं देखते, इस दशामें उस विधवा स्त्रीको आना पड़ता है, यह कितना बड़ा जुल्म कहलाता है ?! इस वावद नीचेकी गुजराती कविता ज्यादा समझमें आवेगा इससे हरेक वान्धवोंको वह वांचनेकी प्रार्थना है । दाडा (नुकता) ना दुखडां वेनी कहुं केटलां, एज दुखे हुं रही रखडती रोज जो, * * * * *
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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