________________
( १५६ ) इस मुजब तीनो वर्गोका विनाश होनेसे प्राणी महा मिहनतसे मिला हुआ मनुष्यभव हार जाते हैं, वास्ते जिसमें किसी तरह के लाभका कारण नहीं ऐसे रिवाजोंको देखनेसे अपन कैसी अधम स्थिति आ पड़है, अपने खुदको तथा अपने वान्धवोंको कितने दुःख उठाने पड़ते हैं, अपन आंखोसे देखते हैं तोभी मिथ्याभिमान रूपी गाढ अंधकारमय भइ हुई अपनी आंख खुलती नहीं सो कितना शोककारक प्रकारहै ? और हमेशाः व्योपारमें नफे टोटेका विचार करने वाले व्योपारी पूत्रों ! इस व्योपारमें अपनेको कितना नुकसानहै और कितना नफाहे यह क्यों देखते नहीं ! लोगों कहनावत है कि, आगिल बुद्धि वनिया-सो क्या अपनी दिव्य दृष्टि बिलकुल नष्ट होगई है ? देश और कालका विचार कहां गया ? अपने खुदके लडकेको उच्च शिक्षा देनेके लिये तो पैसे नहीं मिलते परन्तु मृत्युके बाद खर्चनेके वास्ते तो पैसे मिलेही मिले, जिसकी विमारीमें दया वगैरः में खर्चनेके वास्ते २०, २५ रुपये चाहिये वह तो खर्चनेमें आंखे ऊंडी बैठती हैं परन्तु मृत्सुके बाद तो ५०० या ७०० या (१०००)हजारोंको उमंगके साथ खर्चकर नुकता करते हो ओ हो यह तो कितनी बड़ी अज्ञानता है !!!
इस उपरांत धर्मादा जीमनेवाले अपन खुद होते हैं कारण कि जिसके यहां मृत्यु हो उसके पास नुकता करनेका विलकुल साधन न हो तोभी अपने सगेसोई मिजवानसे लेकर बने उस तरह