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(१४३ ) दीपक ज्या उपोत कारी जैन धर्म वीच दीपे शास्त्र अनेक जान ओ ध्यान विधि नीकी है। ताराचंद मूरि गादीते तपस्या तेज दीपे शत्रुन सिंह सम सज्जन उपकारी ॥ काव्य कोश न्याय व्याकरणादिकके समुद्र अच्छे है नि कलर धर्म वुद्धि पारी है। केरल मुनिद्रचद्र भक्ति ल्य लीनकारी कविवर ! दु खहारी महिमा अपारी है ॥१॥ निर्मल परिणाम सच्चे निर्वाहक नेकीके सरकी भलाइ स्याद्वाद चित चायो है । जानकार जिनमतके ओ मरूपक सचे दिल के दलेल रस गात मन लाये है। पूज्य ताराचन्द्र मूरिपदके उद्योत कारी शीतल सभार वचनसिद्धि कहाहे है । उष्टके अखण्ड श्री केवलचन्दनी मुनीद्र पडे २ कामाम सवाई फते पाये है ।।।। धन्य । शिप्प पारचद्र पियामें पडे प्रविण धर्मधुरघर गुणिजन मन चाये है। अमृत नगान पडिताई चतुराई चित्त ओवजन समूहको वोध अति लगाये है ।