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(१४१) नमें विराजमान करके-गणीजी महाराजको विराजमान करके बढे समारोहके साथ, स्मशान यात्राका जुलुश निकाला गयाथा खामगामके मायः सभी श्रावक साथमेंथे-ससारकी अशारता के सूचक गानेगाते हुवे एव जय २ शब्दोंकी ध्वनीके साथ गुरु महाराजको स्मशानमें पहुचाये जिस स्मशानमें पहुंचे उस समय सध्यारे ५॥ साडेपाच वजनेका समय था गुरुमहाराजका शरीर उष्ण रहनेसे सभीके मनमें यह शका रहीथी कि आप योगनिष्ट है सायद समाधिस्थ होंगे तो। या जीवात्माके कुछ प्रदेश शेष रहे होंगे तो ! इस विचारमे सभी सन्देह युक्त होकर देख रहेथे, इतनेमेही आकाशमें एक आश्चर्य जनक दृश्य देखनेम आया, गुरुमहाराजको जहापर विराजमान कियेथे उस स्थानके ठीक उर्द्ध दिशासें एक प्रकाशमय गोला नीचे उतरा, और ठीक उत्तर दिशामें जाकर थोडीदेर तक टहरगया इधर देखते है तो गुरुमहाराजका शरीर ठहा गार होगया! बस तुरतही आपकोंने आपकी चितायो अग्नि दर्शन करवादिया उक्त उक्त शुभ्र गोलाकार जो पदार्थ उत्तर दिशामें ठहरा हुआया वह पोडै समयके पश्चात् दण्डाकार (शुभवर्ण) होकर दो घटेतक परापर रहा. उस समय ऐसा विदित हो रहाया मानो यह गुरुजीके स्वर्गगमनकी यह सीही तयार हुइ है । स्मशानयानामें जो लोक सायमें थे उनको और खामगाम निवासी अन्यान्य सभी लोकोको यह विश्वास