________________
(१०८); चाहिये ! देखिये ! इसी बातका प्रति पादन करने वाली एक गाथाभी सुनाता हूं।
जो तुल्लसाहणेणं फलेविसेसो नसो विणाहेऊं । कजत्तण ओ गोयम घडोबहेउ असोकामं ॥१॥ __ और एक यहभी वात देखी जाती है कि इस दुनियामें सुखी कम देखे जाते हैं और दुःखी ज्यादा देखे जाते हैं इस्का भी यही कारण मालूम कियाजाता है कि सुखको देने वाले धर्मका सेवन करनेवाले वहोत थोडे हैं और दुःखमद पापके सेवन करनेवाले बहोत ज्यादह हैं, इससेभी पुण्य पापकी सिद्धि होती है. येह दोनोहि तत्व हेय ( त्यागने लायक ) हैं मगर इनमें पुण्यके कइएक अंग मोक्षके साधन भूत होनेसे पुण्यको कथंचित् उपादेयमें ( ग्रहण करने लायक चीजको उपादेय कहते हैं ) भी समार कर सक्ते हैं.
इस्केवाद पांचया तत्त्व आश्रवमाना जाताहै. आश्रव नाम कर्मोके आनेका है इस्के पांच हेतु हैं १ मिथ्यात्व २ अविरति ३ प्रमाद ४ कपाय और ५ योग । इनमें कुदेव कुगुरु और कुधर्मको 'सुदेव सुगुरु और सुधर्म समझनेका नाम मिथ्या त्व है, हिंसा असत्य चोरी मैथुन और परिग्रह इनसे अनित्त होनेका नाम अविरति है, तमाम किस्मके नसोंमें व इन्द्रियों के विषयोमें लगे रहना इसे प्रमाद कहते है. और क्रोध मान