________________
( १०४ ) तरहके आठ प्रकार लिख है तथाहि
अतिदुरात्सामी यादिन्द्रियधातान्मनोनवस्थानात् । सौम्यात्-व्यवधानादभिभवात्समानाभिहाराच ॥१॥ ___मनलब उपरकी बातोसे बिलकुल साफ हो चुका है प्रिय पाठक गणो ! धर्मादि पदार्थ इन आठ भेदोगेसे प्रय भेदके तीसरे स्वभाव विप्रकपनामा भदमें दाखिल किये जाते है। अतः इनका स्वभावही नही दिखलाइ देना है नो 3 दिखलाइ कैसे देगें ? इसलिये इन पदायाकामी अस्तित्व कायालुमानसे अवश्यमेव स्वीकारना पडेगा । जैसे अप्रत्यक्ष परमाणुकोभी कार्यानुमेय होनेसे मानना पडता है इसी तरह नति स्थितिआदि कार्यकी अन्यथा अनुपपनि होनेसे धर्माधर्मादि पदार्थोकीभी अनुमानसे सिद्धि बखूबी हो सक्ती है सो चुद्धिमानोको स्वयं विचार लेना !
इति ।। २ ॥ सेय अजीवतत्त्वं.
इसके बाद तीसरा तत्त्व पुण्यको माना है " पुण्यं सत्क__ में पुद्गलाः" अर्थात् तीर्थकरत्व देवत्व मनुष्यत्व आदिकी
प्राप्ति कराने वाली जीवके साथ लगी हुई शुभ कर्मोकी वर्गणाको नाम पुण्य है यह सुख देनेवाला है, और इससे विपरीत नर्कादि अशुभ स्थानकी प्राप्ति करानेवाली जीवके साथ