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( ९१ ) याहै ? देखनेसहि आपको इसमतकी फजीलतका इल्म होजायगा। इसलिये मैं अपने मुहसे ज्यादा तारीफ करना ठीक नहीं समझता हु. प्रथम आपको जैन मतके तत्त्व सुनने चाहिये। क्योंकि जिसमतके तत्व युक्तिसे अमआय और गनन करने लायक होते हैं उसमतको पारोटिमें दासिल करना चाहिये । टेन्विये मथम जैनमतम सोपत• दोहितत्त्व माने जाते हे एक जीव और दुसरा अजीव. विस्तारसे विचार करनेसे नतत्व होते है इTका सरूप नीचे गृजन समझ.
जोवाऽजीवी तथापुण्यं पापमाश्रव संवरौ । वन्योविनिर्जरामोशी नवतत्तानितन्मते ॥१॥
भावार्थ: जीव-अजीव-पुण्य-पाप-आस्वव-सवर बन्धनिर्जरा-और मोक्ष येह ना तत्त्व जैन मतम माने जाते है इनमें जीयका लक्षण नीचे मूजन लिखा है यकर्ताकर्मभेदाना भोक्ता कर्मफलस्यच संसर्तापरिनिर्वातासह्यामानान्यलक्षण ॥१॥
भावार्थ-कमीको करनेवाला, कर्मके फल भोगनेवाला किये हुए फेरो (कमी) के मुताविक अच्छी धुरी गतिमें जाने वाला और ज्ञानदर्शन चारिनद्वारा तमाम कमाका नाश करने वालाहि जीवहै । इससे अलगदा इसका कोइ स्वस्प नहीं है मत