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( ९१ ) थाय छे. पण तेनी प्रबळता पडे सर्व शेष परिवारनुं पण प्रावल्य वधतुं जाय छे. दुनीयामां बळवानमां बळवान शत्रु मोहज छे.
(७१ ) काम, क्रोध, मद मत्सरादिक सर्व मोहनाज परिवार छे, ___ एम समजीने मोह क्षयाथींए ते सर्वथी चेतता रहेपानी खास जरुर छे.
(७२) हुं अने माहरु एका गुप्त मंत्रथी मोहे जगतने आधळ करी नांव्यु छे. अर्थात् ममताथीज मोहनी वृद्धि थती जाय छे. ' (७३-) नहिं हु अने नहि मारु ए मोहनेज मास्वानो गुप्त मत्र छे. अर्थात् निर्मलताज मोहने मारवा प्रबळ साधन छे.
(७४ ) आत्मानुं शुद्ध स्वरूप समजवाथी तेमज परभावने बरापर पाछानवाथी मोहन जोर पातळ पडे छे.
(७५ ) स्फटिक रत्नोनी जे निर्मल आत्मानुं स्वरूप छे; छता कर्मकलकथी ते मलीनताने पामेलं होवाथी, जीव तेमां मुग्धताथी मुझाय छे.
(७६ ) कर्मकलंक दूर थथे छते जेवु ने ते, निर्मल आत्म स्वरूप प्रगटे छे, त्यारे आत्माने तेनो साक्षात् अनुभव थाय छे.
(७७) कर्मकलंकने दूर करवा माटे सर्वज्ञ प्रभुए सभ्यम् ज्ञान दर्शन अने चारित्ररुपी श्रेष्ट साधन बतावेलुं छे.
(७८ ) एज साधनधी पूर्वे अनेक महाशयोए आत्म शुद्धि करी छे, वर्तमान काळे साक्षात करे छे, अने आगामी काळे करशे एम समजीने उक्त साधनमा दृढतर उधम करखो युक्त छे.
(७९ ) ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य अने उपयोगएज आत्मानुं अनन्य लक्षण छे, एथी भिन्न विपरीत लक्षण अजीव जडनुज छे.
(८०) स्व लक्षणाकित सद्गुणोमां रमण कर, ते स्वभाव रमण कहेवाय छे, अने तेथी विपरीत दोषोमा विभाव प्रवृत्ति कहे-- वाय छे. मोक्षार्थीए विभाव प्रवृत्तीने तजी स्वभाव रमणज कर