________________
(६८)
इत्यादिसे खिन्न हो शेठने विचार करके चार बडे आदमियों को बुलाकर पंचायत कराई. पंचायती लोगाने विचक्षणाको बुलाकर पूछ। कि तेरी हजार सुवर्ण मुद्रायें जो शेठके पास धरोहर है उसका कोइ साक्षी या गवाहभी है ? वह बोली-साक्षी या गवाहकी क्या बात ? इस घरके सभी साक्षी है. मा जानती है, बहन जानती है, भाई भी जानता है, परंतु हडप करनेकी आशासे सब एक तरफ बैठे है, इसका क्या उपाय ? यों तो सबही मनमें समझते हैं परंतु पिताके सामने कौन बोले ? सबको मालूम होने पर भी इस समय मेरा कोई साक्षी या गवाह बने ऐसी आशा नहीं है. यहि तुम्हें दया आती हो तो मेरा धन वापिस दिलाओ नही तो मेरा परमेश्वर , वाली है. इसमें जो बनना होगा सो बनेगा. आप पंच लोग तो मेरे मांबापके समान है. जब उसकी दानतही बिगड़ गई तब क्या किया जाय ? एक तो क्या परतु - चाहे इकीस लंघन करने पड़ें तथापि मेरा द्रव्य मिल विना में न तो खाऊगी और न खान दूगी. देखती हूं अब क्या होता है. यों कहकर पंचोके सिर मार डालकर विचक्षणा रोती हुई एक तरफ चली गयी. ___ अब सब पंचोंने मिलकर यह विचार किया कि सचमुचही इस बेचारीका द्रव्य शेठने दबा लिया है अन्यथा इस बिचारीका इस प्रकारके कलहट पूर्ण वचन निकलही नहीं सकते. एक पंच बोला अरे शेठ इतना धीठ है कि इस बेचारी अबलाके द्रव्य पर भी दृष्टि डाली. अंतमे शेठको बुलाकर कहा कि इस लडकी का तुम्हारे पास जो द्रव्य है सो सत्य है, ऐसी बाल विधवा तथा पुत्री उसके द्रव्यपर तुम्हें इस प्रकारकी दानत करना योग्य नहीं. ये पंच तुम्हें कहते है की उसका लेना हमे पंचोंके बीच में ला दो या उसे देना कबूल करो और उसबाईको बुलाकर उसके समक्ष मंजुर करो कि हां ! तेरा द्रव्य मेरे