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________________ (५५) शिरोमणीको हितशिक्षा देनी सो भी विलाप समान है. ८ दुष्ट अकसर लोगोंको दंड देनेके वास्ते तत्पर रहते हैं, मूर्खलोग कोप करनेमें, विद्याधर मंत्र साधनेमें, और संत साधुजन तत्वग्रहण 'करनेमें तत्पर रहते हैं, ९क्षमा उतपका, स्थिर समाधीयोग उपशमका, ज्ञान तथा शुभ ध्यान चारित्रका, और अति नम्रतापूर्ण गुरु तर्फ वर्तन शिष्यका भूषण है. १० ब्रह्मचारी भूषण रहित, दीक्षांत द्र०य रहित, राज्यमंत्री" बुद्धि सहित और स्त्री लज्जा सहित शोभायमान् मालूम होते है. ११ अनवस्थित-अनियमित-अस्थिर प्राणीका आत्माही अपने आपका वैरी जैसा और जितेंद्रियका आत्माही' आत्माको शरण करने योग्य समझना. १२ धर्मकार्यके समान कोई श्रेष्ठ कार्य, जीवहिंसाके समान भारी अकार्य, प्रेम-रागके समान कोई उत्कृष्ट बंधन, और बोधी लाम-समकित प्राप्तिके समान कोइ उत्कृष्ट लाभ नहीं है. १३ परस्त्रीके साथ, गमारके साथ, अभिमानीके साथ और चुगलखोरके साथ कबी भी सोबत न करनी चाहिए; क्यो कि ए हरएक महान् आपत्तिके ही कारण है. १४ धर्मचुस्त मनुष्योंकी जरूर सोबत करनी चाहिए, तत्व ज्ञाता पंडितजनको जरुर दिलका संशय पूंछना चाहिए, संत-सु साधुजनोंका जरुर सत्कार करना चाहिए और ममता-लोम-दर । कार रहित साधुओंको जरुर दान देना चाहिए; क्यौ कि ये हरएक. लाभकारी है. . १५ विनय विचारसे पुत्र और शिप्यको समान गिनने चाहिए। गुरुको और देवको समान गिनने चाहिए, मूर्ख और तिथंचको समान,
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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