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६५ वीतरागके वचन प्रमाण करे सर्वज्ञ वीतराग परमा___ माने तीनों कालके जो जो भाव कहे है वह वह भाव सर्व सत्य
है, ऐसी दृढ आस्तावाला मनुष्य उत्तम लक्षणोसे लक्षित समकित रत्नको धारण कर सुखा होता है.
६६ ग्रहण किये हुवे व्रत साहसीकतासे पालन करे सत्य सत्ववंत शूरवीरोको लिये हुवे व्रत अखंडतासे पालन करनेमें तत्पर रहेना घटित है. प्राणांत समयमेंभी अंगीकार किये हुवे व्रतोंको खंडन करना मुनासिब नहि है.
६७ अपवाद के वरूत जिस प्रकारसे धर्मका संरक्षण हो तिस प्रकारसे ध्यान पूर्वक परीना.--- राजा, चोर दुर्मिक्षादिकक सवल कारणके वसत जिस प्रबंधसे चित्त समाधिवंत रह सके तिस प्रबंध युक्त दीर्घदृष्टि से स्ववत सन्मुख दृष्टि रखकर उचित प्रकृति करनी,
६८ हरेककार्य प्रसंगमें धर्ममर्यादा याद रखकर चलना-- जिरो धर्मको बाध न लगे, धर्म लघुता न पावे और स्वपर हित साधनमें खलेल न पहोचे ऐसी उचित प्रवृत्ति करनी चाहिए.
६९ आत्मा हर एक शरीरमें विद्यमान है.-- जैसे तिलमें - तैल, फुलोमें खुसबु, दुग्धौ धृत, तैसे प्रत्येक शरीरमें आत्मा रहा है.
सर्वथा शरीर रहित आत्मा सिद्धात्मा कहा जाता है. ____७० आत्मा नित्य है-- नारकी, तिथंच, मनुष्य और देवतारुप चारो गतिमें आत्मत्व सामान्य है.
७१ आत्मा का है-- अशुद्ध नयसे आत्मा कर्मका कर्ता है और शुद्ध नयसे स्वगुणका कर्ता है. ____७२ आत्मा भोक्ता है--- अशुद्ध नयसे आत्मा कर्मका भोक्ता है और शुद्ध नयसे तो स्वगुणकाही भोक्ता है.
७३ मोक्ष है समस्त शुभाशुभ कर्मका सर्वथा क्षय होनेसे