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१३ चुगली करनी नहि--- चुगलखोर मनुष्य दुर्जन गिना जाता है. चुगली करनेकी बुरी आदतसे कचित् अच्छे भले मनुष्यभी संकटमें फस जाते है.
१४ वैभवके वस्त छक जाना नहि सुख प्राप्त होतेही विचार कर लेना के सुखका साधन धर्मही है, तो तिकीही सेवना करनी योग्य है. यह समझकर धर्म सेवन करना. - १५ दुःखके वरून दीनता करनी नहि दुःख आनेसे विचार लेना के दुःखका निदान पाप-दुष्कृत्यही है, तो तिस परत पापसे पहोतही डरते रहेना फायदेमंद है.
१६ पराइ निंदा नहि करनी- निदाखोर मनुष्य धर्मी भाई बाइयोकीभी निदा करता है, तिस्से तिस निदकका आत्मा अत्यंत मलीन होता है. निंदा करनेवाला मृत्युके शरण हो करके नारकी होता है. महान पातकी होने के लिये निदकको ज्ञानी जनभी उनको कर्मचडाल कहकर बुलाते है.
१७ कोनी और रहेनी समान रखनी कहेना कुछ और करना कुछ, यह तो जाहीर ठाइ और लघुताइ गिनी जाती है. सज्जन जो बोलता है सोही पालता है. और प्रतिज्ञा पल सके तितनाही वोलते है. सज्जन पुरुष सदाचारवंत होते है. लोक विरुद्ध वर्तन तो सर्वथा तज देते है.
१८ झंटा खोटेका पक्ष नहि खीचना सत्यासत्यकी परीक्षा करके निश्चय कर सच्चेकाही हमेशा पक्ष ग्रहण करना. परीक्षा किये बिगर कदाग्रहके लिये खोटेका पक्ष-तरफदारी खीचना यह आत्मार्थीका लक्षण नहि है.
१९ शुद्ध देवकीही सेवना करनी राग द्वेष और मोहादि महा दोषस सर्वथा वर्जित निर्दोष, निष्कलंक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी,